लाड- प्यार Poem by vijay gupta

लाड- प्यार

"लाड- प्यार"

बांसुरी की तान सरीखी झिड़कियों से,
जिस्म उसका छिल गया।
चिमटे की खड़- खड़ से,
हृदय उसका कांँप गया।
देहरी लांघी ही थी कि
भाग कर पकड़ लिया,
नाम पता पूछकर,
फिर उसे छोड़ दिया।
ढूंढती फिर रही,
गाँव की गली गलियारों में,
आखिर ढूंढ ही निकाला,
चौपाल के पिछवाड़े से,
आंचल में छिपा लिया,
काला टीका भी लगा दिया,
शाम तक आंखों से,
ना ओझल होने दिया।
समझा था वो रुलाएगी,
यह तो उल्टा ही हुआ,
कुछ ही देर में,
आंचल उसका गिला दिखा,
कुछ ही पल बीतें होंगे,
सुनने को मिला वही राग पुराना,
हाथ में दूध का कटोरा,
बांसुरी की तान सरीखी झिड़कियों बेशुमार।

Wednesday, January 2, 2019
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 02 January 2019

Flute of love motivates mind and this ties up family with deep affection. An interesting poem is nicely penned. A motivational poem this is and an excellent sharing is done really.

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