"सुरमई शाम"
एक सुरमई शाम
आज फिर घिर आई,
कोलाहल पक्षियों का
साथ लाई है।
यह भागने लगे नीड़ की ओर,
घोंसलों मे छिपने भी लगे
लगता है पक्षीगण भी
अंधेरे से डरने लगे
सूरज भी जा छिपा क्षितिज में,
शाम से बचने के लिए
चंद्रमा निकल आया,
आधी-अधूरी मूरत के,
तारों को भी साथ लाया,
भूले-भटकों को राह दिखाने,
रात का अंधियारा छाने को है,
सन्नाटा धरती पर परसने को है,
विरानी छा जाएगी,
कोई- कोई दिखेगा सड़कों पर
फिर भी मजबूरी आगे आएगी,
चहल-कदमी रात में भी
रात भी बीत जाएगी,
सूरज भी निकलेगा
जीवन धरती पर
पहले की भांति बरसेगा ही।
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