कभी हाथ मलते हैं, तो कभी गले मिलते है Poem by Bhaskaranand Jha Bhaskar

कभी हाथ मलते हैं, तो कभी गले मिलते है

कभी हाथ मलते हैं, तो कभी गले मिलते है
इस रिश्ते में हर पल शिकवे गिले मिलते हैं

नुमाइन्दों के हर फ़न में है बर्बादी का जहर
सियासत के जेहन में सपोले पले मिलते हैं

वक्त-ए-इन्तेखाब में नजर आते पाक-सा
ख्वाब मिलते ही ये जनाब विरले मिलते हैं

वतन मिटता खाक में, वे खेलते हैं लाख में
घोटालों के दरख्तों में वे फ़ूले फ़ले मिलते हैं

जिधर देखो उधर आवाम कोसती है उनको
रहनुमाई की वेवफ़ाई से दिल जले मिलते हैं

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