महंगाई Poem by Mohit Chahal

महंगाई

Rating: 2.8

चाहे प्याज़ हो या आलू,
उसे खा सकता सिर्फ़ लालू (लालू प्रसाद) ।
बढ़ गई है फिरसे महंगाई,
करनी पड़ेगी फिर लड़ाई।
सोच में पड़ जाएँगा सब,
“घटेगी यह मंगाई कव? ”
जाना नहीं पड़ना हमें बाज़ार,
प्याज़ का दाम हो जाएगा हज़ार।
सत्युग जैसा नहीं रहा ज़माना,
मुश्किल हो गया एक प्याज़ का पाना।

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Really, today every thing is expensive.
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Mohit Chahal

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Badshahpur
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