यथार्थ Poem by Sushil Kumar

यथार्थ

भाभी और सालिओं के रूप पे कुदृष्टि डालें,

नाना पिरलोभन से उनको लुभात हैं।

बहु और बेटिओं के सम्मुख निर्लज्ज बने,

कैसे-कैसे काम करि डारें, न लजात हैं।

देश को विदेशी अंदाज़ में हैं ढाल रहे,

सुरा पिए सुंदरी के साथ इठलात हैं।

राम जी की आत्मा को हनते रहे जो सदा,

वही राम जी को आज मंदिर बनात हैं।

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Sushil Kumar

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Bulandshahr
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