ये कैसा बंधन है
चाहत का कैसा ये सितम
उधर तू भी चुप है
इधर चुप्पी साधे हैं हम
न तू कुछ कहे
न मैं कुछ सुनु
ये होंठ सिल गए कैसे
कैसे ये छा गए ग़म
आ इस चुप्पी को तोड़ दें
सुलझा दें उलझनें हम
न घटे मिठास रिश्ते की
न प्यार कभी हो कम
साथ न हो तेरा
तो सांसे चले मद्धम मद्धम
क्यूंकि इक दूजे के लिए बने
तुम और हम
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