महिमा मोबाइल देव की Poem by Sushil Kumar

महिमा मोबाइल देव की

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अरे मोबाइल तूने कितना, दूर-जनों को पास कर दिया।
जाने-अनजाने रिश्तों को, तूने कितना खास कर दिया।
फुदक-फुदक कर घर-आँगन में जो गौरया चहका करती,
तेरे परम-मित्र टॉवर ने उसका सत्यानास कर दिया।

भिक्षुक हो या रिक्शा-चालाक, सबके कानों पर मडराया।
ज्ञानी-ध्यानी अरु सांसारिक, सब पर बुरी तरह तू छाया।
तेरे रहते दूर न होंगे, अब प्रेयसी-प्रीतम के जोड़े,
तुझ पर किट-पिट करते रहते रात-रात भर हाय निगोड़े।

प्रेम-पत्र की नाव कभी अब, नदि-नालों में नहीं बहेगी।
कोई विरहन अब न पवन से अपने मन की पीर कहेगी।
हे मोबाइल देव तुम्हारा स्वागत है झूंठों के घर में।
जाता है पश्चिम को मानव, बतलाता खुद को पूरव में।

सुर-नर-मुनि जन पार न पावें, तेरी महिमा बड़ी निराली।
ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी चाहें, नहीं समझ में आने वाली।
बैर-प्रीत मदपान न छुपते, खांसी-ख़ुशी न छुपने वाली।
छुप जातीं तेरे आँचल में, कितनी ही करतूतें काली।

दफ्तर क्या कोर्ट कचहरी क्या, हर जगह कमांड तुम्हारा है।
सम्पूर्ण जगत के हे स्वामी, सारा ब्रह्माण्ड तुम्हारा है।
तुमको निर्मित कर मानव ने, खुद अपनी मौत बुलाई है।
तृतीय पुत्र तू सूरज का, यम और सनी का भाई है।

लद गए जमाने फ़ोनों के, कट रहे कनेक्शन नित अनेक।
लाचार हुआ दुरभाष केंद्र, मोबाइल की रफ़्तार देख।
तुम हो म्रदु-भाषी देव अहो, मीठे स्वर में बतियाते हो।
जैसी पसंद होती जिसकी, वैसी ही धुन लगवाते हो।

तुमसे सब डरते रहें सदा, बस एक कॉल में काम हुआ।
आ गए मिडिया वाले तो, बस समझो काम-तमाम हुआ।
फोटो खींचो आवाज भरो, क्लीपिंग हो काले धंधों की।
तुम पोल खोलते दंगों में, ईश्वर-अल्लाह के बन्दों की।

किसने कितनों का क़त्ल किया, कितनी अबलाओं को लूटा।
कितने बच्चे हो गए अनाथ, कितने बृद्धों का सिर फूटा।
टीवी - चेनल वाले भी तुमसे, लोकप्रियता पाते हैं।
बस एक बार की क्लीपिंग को, दस - पंद्रह बार दिखाते है।

हे फिल्म-केमरों के वंशज, तुम टेलीफोन के हो सपूत।
हर युग में पूजे जाओगे, महिमा तुम्हारी है अकूत।
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Sushil Kumar

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Bulandshahr
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