"अकेला हूँ"
सामने खड़ा हरा-भरा पेड़,
आज नितांत अकेला खड़ा है।
पत्ते साथ छोड़ गये,
चिड़ियों का जमावड़ा अदृश्य हो गया।
हवाओं ने लिपटना बंद कर दिया,
वे बिना बोले-बतलाऐ सीधे निकल गये,
बच्चे भी अब
इधर का रुख नहीं करते।
कारण साफ है
इस पर पतझड़ की मार है।
खैर कुछ ही दिनों की बात है,
ऋतुराज बसंत का आगमन होगा,
बहार दोबारा आयेगी,
हवाऐं लिपट-लिपट कर जायेंगी,
पत्ते दोबारा आयेंगे
हरियाली वापस लायेंगे,
परंतु क्या बहार उस बूढ़े की जिंदगी में भी आयेंगी?
जो उम्र के अंतिम पड़ाव पर कदम ताल कर रहा है,
और आज अपनी कुटियाँ में,
अकेला खड़ा है,
ठीक पतझड़ के मारे,
पेड़ की मानिंद,
आज उसे ऋतुराज बसंत की नहीं
अपनों की जरूरत है।
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अकेला खडा हु real life here