तुम मेरी सांस हो Poem by Tribhuvan Mendiratta

तुम मेरी सांस हो

प्रिय

तुम मुझे चाहती हो

तुम मेरी सांस हो;

माफ करना प्रिय;

मैं अपने शांत गोंसले से उड़

कर आ रहा हूँ

तुम्हारे पास;

नहीं रहना चाहता उन

परिंदों के पास

जो मुझे द्खे बिना

उड़ जाते हैं।

Friday, September 26, 2014
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