न मैं घटा में न मैं पवन में, न इस गगन में न मैं ज़मीं पर. Poem by Abhishek Omprakash Mishra

न मैं घटा में न मैं पवन में, न इस गगन में न मैं ज़मीं पर.

Rating: 4.0

न मैं घटा में न मैं पवन में, न इस गगन में न मैं ज़मीं पर.
न इस धरातल के गंगाजल में, न मैं यही हूँ, न मैं वहीं पर
हे मेरी राधे, तू देख मुझको मैं तो बसा जा कर तेरे मन में
या मैं उपस्थित मिलूंगा तुझको, पड़ेगी तेरी नज़र जहीं पर

कवि अभिषेक ओमप्रकाश मिश्रा

Monday, January 5, 2015
Topic(s) of this poem: love and pain
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 06 January 2015

बहुत सुन्दर मुक्तक है, अभिषेक जी. प्रेम की विशालता इसी मैं है कि वह एक कण से ले कर ब्रहमांड तक में व्याप्त है. आपकी रचनाओं में सरलता, सरसता और वैचारिकता आदि सभी तत्व मौजूद हैं. कृपया इस क्रम को जारी रखें.

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