मन की बात: 2 आतम ज्ञान..... Poem by Devanshu Patel

मन की बात: 2 आतम ज्ञान.....

ज्ञानी बन बजता रहा, जैसे बाजत ढ़ोल
बजता है बहु गरज के, अन्दर पोलम पोल.....

पोथी पढ़ पंडित भया, मन झाँका नहीं, सोई
ज्ञान नहीं कछु कामका (जो) मन अँधियारा होय......

जितना चाहे जान ले, घूम ले दुनिया दूर
खुद को गर जाना नहीं, (वो) ज्ञान बिना है नूर.....

ज्ञान, ध्यान सब कोई कहे, जान सका ना कोई
जब तक प्रभु जाना नहीं, ज्ञान कहाँ से होय....

ज्ञान अगर पाना तुझे, त्यज दे मन अभिमान
निर्मल मन ही कर सके, ज्ञान अमृत का पान....

'ब्रह्म 'एक बस सत्य है, सब जग मिथ्या जान
मिथ्या घर-परिवार सब, सच वही आतम ज्ञान.....

जाना पर माना नहीं, यकीं किया नही कोई
जब लग ईश कृपा न हो, ज्ञान अति दुर्लभ होय....

© देवांशु पटेल
Chicago
6/ 6/2018

मन की बात: 2 आतम ज्ञान.....
Wednesday, June 6, 2018
Topic(s) of this poem: self reflection
COMMENTS OF THE POEM
Abhipsa Panda 30 October 2018

Really very true sir...Other than God nothing is permanent......

1 0 Reply
Abhipsa Panda 31 October 2018

Thank you so much Sir for appreciating my name...

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Devanshu Patel

Devanshu Patel

Kapadwanj, Gujarat (India)
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