मन की बात: 4 सुख.....! Poem by Devanshu Patel

मन की बात: 4 सुख.....!

Rating: 5.0

विषय: सुख.....!

सुख बस एक आभास है, जैसे मृगजल होइ
जितना पीछे भाग लो, तृष्णा कम ना होय.....

सुख के पीछे भागते आज दिखे सब कोई
किसे मिला है आज तक? जो भागे वो रोए.....

सुख सम्पद से ना मिले, मन की भ्रमणा कोई
जैसे हड्ड़ी, श्वान के सुख का कारण होय.......

'सम्पद' सुख जो हो अगर, धनी दुःखी ना होय
सो नहीं पाता चैन से, धनपति जग में कोई.....

सुख-दुःख मन की एक दशा, नहीं पदारथ कोई
जो चीज़ मुझ को सुख दे, दुःख वो हि ओर का होई....

सम्पति सुख साधन रहे, साध्य कभी ना होय
साध्य अगर जो बन गई, शान्ति मन की खोय....

मन संतोष ही मात्र है, सुख का एक उपाय
मिले जो प्रभु परसाद है, कभी अवसाद न थाय.....

(पदारथ- पदार्थ, परसाद- प्रसाद, अवसाद-दुःख, डिप्रेशन, साध्य-उद्देश्य)

© देवांशु पटेल
शिकागो
6/12 /2018

मन की बात: 4 सुख.....!
Wednesday, June 13, 2018
Topic(s) of this poem: self reflection
COMMENTS OF THE POEM
Abhipsa Panda 12 November 2018

really very true....in this materialistic world, our source of happiness is a reason of sorrow fo others...the only thing which can give us real happiness is getting united with the divine...thanks for sharing...

1 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Devanshu Patel

Devanshu Patel

Kapadwanj, Gujarat (India)
Close
Error Success