दर्द और रिश्ते 14.2.16—12.50 PM
दर्द और रिश्ते का रिश्ता भी कमाल है
बिना दर्द के बनता नहीं
न कोई इसकी मिसाल है
रिश्ते नए हों या पुराने हों
बिनती से बने अनजाने हों
चाहे जितने फूल खिले हों
जितने भी मंसूर मिले हों
जब तलक कोई अपना है
तब तक सुनहरा सपना है
जब कोई जुदा हो जाता है
खालीपन बहुत सताता है
हर पल भारी हो जाता है
समय कहाँ छुप जाता है
काटो, काटे कटता नहीं
जीना दूभर हो जाता है
मोहब्बत के दिन चार करो
जिंदगी का न निर्वास करो
मत काटो दिन तन्हाई में
मत तरसो फिर जुदाई में
बदले की रवायत में दम नहीं
जो हो चूका उसका गम नहीं
जैसा है वैसा स्वीकार करो
एक बार करो हर बार करो
उनसे केवल प्यार करो.......
उनसे केवल प्यार करो
Poet; Amrit Pal Singh Gogia
Wah wah....badhiya kavita hai...Maza aagaya... मोहब्बत के दिन चार करो जिंदगी का न निर्वास करो मत काटो दिन तन्हाई में मत तरसो फिर जुदाई में
Thank you very much for taking out time & interest to comment so nicely! I appreciate!
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Very interesting and thrill giving poem composed with amazing tune inside. Relationship may happen with unknown or known love remains within. Excellent one...10
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