A-231 आज तेरी इबादत Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-231 आज तेरी इबादत

A-231 आज तेरी इबादत 18.1.17- 4.28 AM

आज फिर इबादत की तमन्ना जाग उठी 
मैं उठा, दोनों हाथ उठे, रागिनी जाग उठी
मुश्किल तो तब हुई, जब तुम ही न मिले
शक हुआ और उसकी फितरत जाग उठी

ओर मिले, छोर मिले, मिले कोई विराम
तभी तो लिखा जाये, कोई छोटा सा नाम
कुछ सुर्खी, कहीं बिंदी, कहीं विराम लगे
तभी तो, मैं कह सकूँ, मुझे मेरे राम मिले


बहुत यत्न किए, बहुत दस्तक भी दी
मुझे तस्वीरों के, हज़ारों अम्बार मिले
उन तस्वीरों में, तू तो कहीं भी नहीं था
जब भी मिले, तुम मिले, निरंकार मिले

मन में एक हूक उठी, एक आवाज़ उठी
उठा सरगम, सजा सुर, रागिनी राग उठी
मधुर बेला, स्तुति की पुकार जाग उठी
आज फिर इबादत की तमन्ना जाग उठी 

Poet: Amrit Pal Singh Gogia

A-231 आज तेरी इबादत
Tuesday, January 17, 2017
Topic(s) of this poem: nature love,worship
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