A-234 इन हसीन वादियों में Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-234 इन हसीन वादियों में

A-234 इन हसीन वादियों में 7.2.17—7.16 AM

इन हसीन वादियों में क्या रखा है
उलझन उधेरबुन ने उलझा रखा है
कब आएगी और कब नहीं आएगी
सिलसिला ये बदस्तूर बना रखा है

उसके आने की ख़बर हज़ूम टूट पड़े
कइयों को उसने यूँ ही जता रखा है

कइयों की रोज़ी रोटी का सामान है
कइयों को उसने यूँ ही दौड़ा रखा है

कभी धूप कभी छांव का खेल सारा
सारे जगत में यह शोर मचा रखा है
क़ुदरती करिश्मा कहकर ये बहकती
अच्छों अच्छों को पानी पिला रखा है

नहीं बहकती है तो वह एक ही अदा
कभी ओले कभी पानी बना रखा है
दुनिया देखने आती मखमली चेहरा
कभी दिखाती वर्ना वही छुपा रखा है

इसकी ख़ूबसूरती भी तेरे चाहने में है
वर्ना कौन पूछता है क्या छुपा रखा है

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

A-234 इन हसीन वादियों में
Sunday, June 25, 2017
Topic(s) of this poem: beauty,love,nature
COMMENTS OF THE POEM
Akashdeep Singh Sidhu 07 July 2017

Awesome lines sir

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