A-288 छू लेने की तमन्ना हुई 3.4.17- 1.58 AM
छू लेने की तमन्ना हुई
उस पर क़ाबू पा न सके
खुद पर क़ाबू कर लिया
खुद को हम न हरा सके
अश्क़ों को बहा न सके
तुमको हम भुला न सके
रोयें तो किस बिनाह पे
नीर भी हम ला न सके
यह कैसी ज़िन्दगी भला
करीब भी तो आ न सके
तेरा ज़िक्र भी तो आएगा
तुमको हम बता न सके
हम तेरी सोहबत में रहे
यह भी हम बता न सके
प्यार जो तुमसे किया है
यह भी हम जता न सके
बड़ी मुश्किल में खड़े हैं
खुद को समझा न सके
इतने करीब पाकर भी
हम तुमको बुला न सके
Poet: Amrit Pal Singh Gogia "pali"
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