प्रेम में कपास Poem by Arvind Srivastava

प्रेम में कपास

उस कपास को नहीं पहचानता
जिसने जन्म लेते ही
मेरा अंगरखा बनाने का आमंत्रण स्वीकार कर लिया था

मैं उस भूमि को भी नहीं जानता
जहां उस बीज ने किया था गर्भधारण
उस पौधे ने अपने
फल के उदर में
मेरे लिए छिपा रखा था कपास

मेरे हिस्से का कपास
किस गट्ठर से आया
मुझे नहीं पता
निश्चय ही मेरे सुख की कामना में
अपनी जिम्मेदारी निभाया होगा वह
बड़े जतन से
आकाश में किसी बवंडर उठने से पहले
वह ताने बनकर खड्डी के रास्ते
मुझतक पहुँचने की प्रक्रिया में
शामिल हो चुका होगा

यह मुझसे कपास का प्रेम था गहरा
और उसका यह खामोश सफ़र
जिसने बार-बार बचाया मुझे
नंगा होने से!

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कपास का प्रेम से सम्बंध पर आधारित कविता
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