Ek Roz Tumse Puchhungi Poem by bhavna singh

Ek Roz Tumse Puchhungi

Rating: 4.8

मेरे कुछ सवाल है जो क़यामत के रोज़ पुछूगीं तुमसे,
क्योंकि उससे पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके…
इस लायक नहीं हो तुम…..

मैं जानना चाहती हूँ क्या उससे पहली मुलाक़ात में
उसकी हंसी की तरीफ़ की थी तुमने..
जैसे मेरी किया करते थे..
क्या रात-रात भर छत पर टहल कर उससे भी बातें किया करते थे..
जैसे मुझे जगाया था तुमने, ,
क्या उससे भी कसमें, वादें, उमीदें वाबस्ता थी तुम्हारी..
जैसे मुझे दिलाया करते थे…

मेरे कुछ सवाल है जो क़यामत के रोज़ पुछूगीं तुमसे,
क्योंकि उससे पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके…
इस लायक नहीं हो तुम…..

क्या थाम लेते थे उसका हाथ भी इस डर में कि कहीं
खो न जाये वो…
दूर तुमसे एक पल के लिये हि सही हो न जायें वो…
क्या उसको भी गिनाई है अपनी एक्स गर्ल फ्रेंड्स कि लिस्ट..
जो नाम मुझे बताया करते थे…

मेरे कुछ सवाल है जो क़यामत के रोज़ पुछूगीं तुमसे,
क्योंकि उससे पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके…
इस लायक नहीं हो तुम…..

मैं जानना चाहती हूँ क्या उसको भी घुमयी है वो सारी जगह तुमने..
जहाँ सिर्फ़ मेरे साथ तुमको सुकून मिलता था..
क्या बता दिया तुमने उसको भी के विराट तुम्हारा फ़ेवरेट प्लेयर है…

मेरे कुछ सवाल है जो क़यामत के रोज़ पुछूगीं तुमसे,
क्योंकि उससे पहले तुम्हारी मेरी बात हो सके…
इस लायक नहीं हो तुम…..

मैं जानना चाहती हूँ कि उसकी, आँखो में देख के खुद को पा लिया करते हो..
उसकी साँसों में तुम घुलते हो, तो खुद को सम्भाल लिया करते हो…
क्या उसी तरह माथा चूमा करते हो उसका,
जैसे मेरा चूमा करते थे…
क्या फोन पर अक्सर बात करते-करते अब भी सो जाया करते हो…
क्या उसके नाराज़ हो जाने पर भी, तुम खाना नहीं खाया करते हो..

मेरे कुछ सवाल है जो क़यामत के रोज़ पुछूगीं तुमसे,
क्योंकि उससे पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके…
इस लायक नहीं हो तुम…..

क्या उसको भी तुम छोड़ दोगे मेरी ही तरह..
ये वादा भी तोड़ दोगे मेरी ही तरह..
क्या ये मोह्ब्बत भी तुम्हारी..
तुम्हारी ही तरह बेकार है..
क्या दिल लगाना, खेलना, दर्द देना, फ़िर तोड़ना..
बस यहीं तुम्हारे हथियार हैं…

मेरे कुछ सवाल है जो क़यामत के रोज़ पुछूगीं तुमसे,
क्योंकि उससे पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके…
इस लायक नहीं हो तुम…..
By -;
‌Bhavna R Verma

Monday, October 9, 2017
Topic(s) of this poem: alone,cheat,heartbroken,love
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Love poem
COMMENTS OF THE POEM
Jazib Kamalvi 06 November 2017

A nice poetic imagination, bhavana. You may like to read my poem, Love and Lust. Thanks

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