गांव आज भी रोता है
शहरों में ऊँचे भवन बन गए
गांव आज भी रोता है
सड़कें पक्की बनी हों चाहे
मकान कच्चा होता है. गांव..
विद्युत तार बिछे हैं लेकिन
बिजली दौड़ नहीं पाती।
बिजली पाने हेतु आज भी
तरसता है गांव का वासी।
ऊँचे खड़े खम्भों के नीचे
घनघोर अँधेरा होता है। गांव..
सडकों पर गड्ढे घुटने भर
डगमगाती चलती है गाड़ी।
गाड़ी वालों की दादागिरी
भूसे सा ठूंस भरें सवारी।
सवार बदन रगड़ता चलता
राही खाता हिचकोला है। गांव..
नेता, अफसर धौंस जमाते
भोला भला गांव का वासी।
सरकारी धन गलता जाता
नन्हीं डली ही वहां तक जाती।
स्वार्थ सिद्धि में बांटे समाज
नेता को दर्द न होता है। गांव..
शिक्षा की चल रहीं दुकाने
सरकारी स्कूल पंगु बना ।
ऊपर अभाव रोजगार का
युवकों हेतु भुजंग बना।
भविष्य युवा की कौन सवांरे
भाग्य का रखे भरोसा है। गांव …
अस्पताल पड़े स्वयं बीमार
सही चिकित्सा मिल न पाती।
कभी हो डॉक्टर अनुपस्थित
कभी मिलती नहीं दवाई।
भर्ती रोगी कष्ट में रहता
पांव बैतरणी में होता है। गांव..
बुलबुल व मैना गए विदेश
गौरैया भी आती लुक छुप के।
पेड़ के पत्ते फांकते धुआं
चिमनी के छोड़े फुंक फुंक के।
बाग से हुआ लापता तोता
समय परिवर्तन पर रोता है। गांव..
गाय, बकरी खूंटे पर रहते
चरागाहों में निर्माण हो रहे ।
बंट बंट के खेत छोटे हो गए
दड़बे से लघुतम घर हो रहे ।
दरवाजे पर पेड़ कहाँ रहे अब
कुत्ता, बांस की छाँव सोता है। गांव...
बेटे बेटियों को भेजें परदेश
कमा कर के लाएंगे धन।
मात पिता का होता सपना
होंगे एक दिन वे संपन्न।
वो भी जा शहरों के हो जाते
घर बुढ़ापा अकेले रोता है। गांव..
- एस० डी० तिवारी
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