तुम Poem by Jaipal Singh

तुम

तुम क्षितिज की लालिमा हो
या फिर सुबह की धूप हो
तुम दूर कितनी भी रहो
दिल के बहुत नजदीक हो.

तुम धरा की हरीतिमा, या
फिर गगन की चांदनी हो
जलधि जल की गहनता
या फिर मधुर संगीत हो.

तुम व्यथित मन की वेदना
या बस मधुर अहसास हो.
या इस एकाकी जिंदगी में
बस प्रेरणा का स्रोत हो.

दिल जानता है तुम नहीं हो
फिर भी तुम्हें पाना चाहता है
जीतता रहा अब तक सभी से
बस तुम्हीं से हारना चाहता है.

जिंदगी की इस डगर पर
संग तो चल पाए न हम
बस तुम्हारी याद बन कर
अब साथ चलना चाहता है.

Tuesday, January 28, 2020
Topic(s) of this poem: love and dreams
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