क्या - क्या बना डाला (KYA - KYA BANA DALA) Poem by Nirvaan Babbar

क्या - क्या बना डाला (KYA - KYA BANA DALA)

मेरे हर बुरे ख़्वाब को कुदरत ने हकीक़त बना डाला,
सहर को सहर से ही शुरू हुई रात बना डाला,

हर अपनी राह को अजनबी राह बना डाला,
ख़ुदा तूने मुझे ख़ुद से ही ख़ुद को ज़ुदा कर डाला,

ठंडी हवा मैं बहती यादों को, गर्म हवा मैं तब्दील कर डाला,
ऐसी क्या ख़ता हुई रहबर, कि ज़िन्दगी को मौत का फ़रमान बना डाला,

निर्वान बब्बर

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