Lobh Rog लोभ रोग Poem by S.D. TIWARI

Lobh Rog लोभ रोग

लोभ रोग से तड़पता है मन
दवा इसकी आसान नहीं है।
निरंतर पीड़ित और और से
विज्ञानं में कोई निदान नहीं है।

सब वैभव रहकर भी लालसा
और मिले अभी और मिले।
दुनिया की सब दौलत मिल जाय
साक्षात स्वयं कुबेर मिले।
अंतहीन इच्छा है मन में
मिलता कोई समाधान नहीं है।

जमा कर लिया है इतना सब
अभी और हड़पने की हा होड़।
राज कर सकेंगी कई पीढ़ियां
भर लें घर में जोड़ जोड़।
यह तो मन का मात्र मिथक है
ईश्वर का वरदान नहीं है।

पैसा क्या सब कुछ चला रहा
पैसे से क्या हवा भी पाओगे
नरम बिस्तर तो ले आओगे
पैसे से क्या नींद भी लाओगे ।
पैसा देता खतरे को आमंत्रण
निर्भय जो बेईमान नहीं है।

जितना पैसा प्रभु ने दिया है
नाम लो उसका उतनी बार।
थक जाओगे शीघ्र ही उससे
दर्शाओगे कि हो लाचार।
पैसे से सुखी नहीं है नर
जिसका प्रभु में ध्यान नहीं है।

इच्छाएं कभी भी मारती नहीं
हाँ शांति को अवश्य मारती।
लोभ मित्रों को दूर भागकर
उसके प्यार को नकारती।
वही तो सबका प्रियवर होता
जिसे धन का अभिमान नहीं है।

लोभ तो भय को देता जन्म
ईर्ष्यालु भी करता है उतपन्न।
आभाव से आती है विनम्रता
प्रेरित करता करने को श्रम।
विवेक उसका नष्ट हो जाता
जिसको इसका ज्ञान नहीं है।

(C) S. D. Tiwari

Monday, July 6, 2015
Topic(s) of this poem: hindi,philosophy
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