कदम कदम बढ़ रहा हूँ
मै मजिल के करीब
तीव्र संकल्पों से लिखता हूँ
खुद अपना नसीब
मेरी हसरतों ने दी है
मेरे सपनो को ये उड़ान
ए मेरे मुकद्दर
तू है मेरे कर्मो का ही अंजाम
मै जो भी हूँ वो मैंने मेहनत से कमाया है
ये वो जिस्म है जो संघर्षों की आग मे
कुंदन बन पाया है
नींद के सपने नहीं है ये
इन सपनो को मैंने जागते हुए सजाया है
ये वो घरोंदे है जिन्हें तिनका तिनका मैंने कमाया है
मैंने अपनों का दरद भी सहा है
गैरों ने दिया मुझे सहारा है
मेरी हसरतें उन राहों सी है
जिनोहने मुझे आडा टेडा घुमाया है
फिर भी मै थकता नहीं रुकता नहीं
मेरी मजिल का मुझमे हरदम नजारा है
मै उस नदी की तरह हूँ
जिसके दिल मे सिर्फ सागर ही सागर समाया है
' शिव काव्य लहरी '
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