मेरे प्राण बेस है साजन, नगर बनारस में।
काशी वाशी, शिव अविनाशी, रमे बनारस में।
गंगा नहान, आत्मा की शुद्धि,
मिल जाती पापों से मुक्ति,
वेदों का है ज्ञान भरा, नगर बनारस में।
तीर्थों में तीर्थ कशी घाट,
धूल जाते हैं अनेकों पाप,
विश्व्वनाथ के दर्शन पाएं, नगर बनारस में।
प्राचीन सभ्यता और संस्कृति,
रचना यहाँ अमर ग्रंथों की,
तुलसी, कबीर की कलम उठी, नगर बनारस में।
वास यहाँ पावनता लाती,
अंतिम यात्रा मोक्ष दिलाती,
बैकुंठ द्वार का धाम बना, नगर बनारस में।
साधु संतों की आत्मा रमती,
संगीत कला भी संग में बसती,
परम ज्ञान के चक्षु खुल जाते, नगर बनारस में।
बुद्ध के ज्ञानोपदेश का उद्गम,
सदियों पुराने मंदिर, आश्रम,
इतिहास भी लघु सा लगता, नगर बनरा में।
भोर भये ही मंत्र गूंजते,
मंदिर घंट, घड़ियाल बजते,
सोहर, ठुमरी, बिरहा, कजरी, नगर बनारस में।
(C) S. D. Tiwari
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