Pahli Barish Poem by Suhail Kakorvi

Pahli Barish

अरमान ज़मीं के जाग उठे दिलदार ये पहली बारिश है.
कल सोच रहा था सारा जहाँ दुश्वार ये पहली बारिश है.

रंजिश जो हमारे बीच रही तो आग फलक ने बरसाई,
अब सोच न कुछ मौसम को समझ ए यार ये पहली बारिश है.

फितरत में नज़र आते हैं हमे अपनी ही मोहब्बत के पहलू,
इंकार था गर्मी का आलम इकरार ये पहली बारिश है.

एहसासे जुदाई दोनों तरफ आँखों से मेरी आंसू हैं रवां,
उस पार न जाने क्या है समां इसपार ये पहली बारिश है.

गुन्चों पे अजब शादाबी है और जाग उठी है हरियाली,
तम्हीदे बहIरे ताज़ा का दीदार ये पहली बारिश है.

तू और कहीं मै और कहीं आगोशे तमन्ना सूनी है,
ऐसा तो कभी पहले न हुआ इस बार ये पहली बारिश है.

वो रहमो करम है बिलआखिर मुझको तो सुहैल इसपर है यकीं,
बस उसकी इनायत का यारों इज़हार ये पहली बारिश है.

______________________

Monday, August 17, 2015
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success