पैसे का गुलाम
पैसा बना कर के इन्सान पैसे का गुलाम हुआ
पैसे के पीछे ही इंसानियत का कत्लेआम हुआ।
पैसे कमाने के लिये तो कुछ भी करते हैं लोग
अब ईमान बेचने का भी काम सरेआम हुआ।
पैसे के वजन से ही बड़प्पन को तोला जाता
चरित्रवान से ज्यादा पैसेवाले का नाम हुआ।
लूट रहे व्यापारी लोग लूट रहे सरकारी लोग
पैसा कमाना संत लोगों का भी काम हुआ।
दया, धर्म से मुह मोड़े, लालच का चोला ओढ़े
पैसे से जिंदगी का फैला ये ताम झाम हुआ।
अपने अपनों से ही अब, करते छीना झपटी
पैसे के लिए सगा रिश्ता भी बदनाम हुआ।
रिश्ते नातों से दूर खुदा से भी बेखुदी रक्खे
इबादतखाना तक में पैसा ही सलाम हुआ।
- एस० डी० तिवारी
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