Peace Poem by Satyendra Pratap singh

Peace

ऐ वतन तेरी जमी पे बेगुनाह होना खता है

बेगुनाह ही खाते है सीने पे अपने गोलीया

गर बच गये तो धमाको मे उड जाती है उनकी टोलीया

हम न हिदुं है न मुस्लिम चैन से जीने दो हमे
मौत के सौदागरो नफरत की सीख न दो हमे

कौन सा है धर्म जो कहता है औरो को मार दो तोड दो मन्दिरो को और मस्जिदो को आग दो

हमको न मन्दिर और न मस्जिद चाहिए खुश है अपनी मुफलिसी मे अमन चैन की जिन्दगी मे तुम नफरत की राजनीति त्याग दो

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