नही -नही- यह
गलत सलाह है
हमें किसी ओर ही
राह पे चलना होगा
अब हम इक्कसवी सदी में है
अब धीरे -धीरे
ये समाज ही बदलना होगा
नही छोड़ना है
हिन्दू धर्म को
नही थामना है किसी और धर्म को
बस धर्म के इस मिथ्या पक्ष को बदलना है
जो चुप -चाप प्रवेश कर गया था इसमें
इक विष, इक रोग बनकर
इस पुरातन -सनातन तन में
इस चिरंजीवी धर्म में
उस जाति -प्रथा को दूर करना है
इसका कोई ओर उपचार नही है
हमें
प्रथम हिन्दू महा संगीति के
पथ पर ही चलाना है
सुनहरी था हमारा आदिकाल
भविष्य भी हमारा भव्य ही होगा
अब वक्त आ गया है
इस कुरीति को दूर करने का
अब हर कोई यहाँ पर सभ्य होगा
बहुत झेला है अपमान
बहुत लुटाया है मान
बस किसी ने चुपके से शरारत कर के
छीन लिया था हमसे सम्मान
हम इस सब के अधिकारी नही थे
हमें बनाया गया था धोखे से
वास्तव में हम भीखारी नही थे
हमने भी जन्म लिया था
उसी रंग के खून से
उसी क्रिया से, उसी प्रक्रिया से
हमको भी भेजा था मालिक ने
मानव की जून में
पर यहाँ हम लोगों से धोखा हुआ था
कविता का अगला भाग आगे की पोस्ट में भेजूंगा
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