समय कहाँ भाग जाता
हे प्रभु!
तूने समय को दे दिया
इंजन और पहिया
मगर क्लच और ब्रेक
कदापि नहीं दिया
दौड़ते ही देख रहा हूँ
जबसे तूने पैदा किया
हे प्रभु!
समय की गाड़ी
तू ऐसी तीव्र गति से चलाता
इसे कोई थाम न पाता
समय की गाड़ी पर सवार
कई तो आनंद उठाते
कईयों का दब, कचूमर निकल जाता
हे प्रभु!
पिछला पल तो बीत चुका
अगला पल अभी तेरी ही कोख में
अभी का पल, लगता तो है साथ
किन्तु नहीं रख पाता, पास मै
हे प्रभु!
बता दे, मुझे भी यह रहस्य
कहाँ चला जाता है सारा समय
भागता हुआ तीन सौ साठ सेकंड
प्रति घंटे से होके गतिमय
हे प्रभु!
अब तक, जग से जाने
कितने ही लोग, हो चुके विदा
कहा हैं? न कोई पद चिन्ह,
न कोई संकेत, न उनका कोई पता
हे प्रभु!
जो मै समझ पाता हूँ,
समय तेरा भक्ष है; शेष सब समय का
जिसे पीसते रहते तेरे दन्त
यदि, असत्य कहूँ तो कहना
आदि से, तेरे मुख में समाता जा रहा
और अनंत ही है इसका अंत
- एस० डी० तिवारी
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