वक़्त के साये -Shadows Of Time Poem by akshaya shah

वक़्त के साये -Shadows Of Time

Rating: 5.0

वक़्त की दहलीज़ पे जाने कितने ख़्वाब टूट गए
हर साया अपना बन कर आया हर साये के हाथ छूट गए

कुछ लम्हों की कुछ सदियों की इंतज़ार में ही तो गुज़री ज़िन्दगी है
हर लम्हे में एक सदी, हर सदी में कुछ लम्हे रूठ गए

ख़ुद को ख़ुदा समझें इतनी भी जहालत तो नहीं
ख़ुदी पे मगर ऐतबार किया तो ज़लालत की इन्तेहा से टूट गए

टूटे हुए आईने में जो चेहरे को हम बेख़याल देखा किये
बिखरे हुए शीशे क़दमों से लहू लूट गए....

Friday, April 27, 2018
Topic(s) of this poem: dreams,loneliness
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