शहरों में भेड़िये
कैसा समय आ गया, महिलाओं को
रहना पड़ रहा पहरों में.
आज शहरों में जी रही माता बहनें
खौफ की ही लहरों में.
उनके चीख की आवाज भी अब तो
गुम जाती है बहरों में.
देख कर अंदाजा लगाना मुश्किल
कौन छुपा है चेहरों में.
आज कल जंगली भेड़िये भी यारों
घुस आये हैं शहरों में
- एस० डी० तिवारी
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem