Shri Durgakathamritam श्री दुर्गा कथामृतम् अधयाय ११ भाग १ Poem by S.D. TIWARI

Shri Durgakathamritam श्री दुर्गा कथामृतम् अधयाय ११ भाग १

हर्षित देवताओं के दिव्य से,
आकाश व धरती चमक उठे
अभीष्ट की प्राप्ति होने पर
उनकै मुख कमल दमक उठे।

इन्द्र आदि देवताओं ने
धरा रूप में जो है स्थित
अग्नि को आगे करके वे
कात्यायनी की, की स्तुति।

सरे जगत को धरने वाली
शरणागत की पीड़ा हरने वाली
जगन्माता विशेश्वरी! प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

तुम्ही अधीश्वरी चराचर की
आधार हो, तुम्ही जग की
जगत की अधीश्वरी! प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

धरा रूप में तुम हो स्थित
जल के रूप में देती तृप्ति
पराक्रमी परमेश्वरी प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

अनंत बलयुक्त, शक्ति वैष्णवी
प्रसन्न तो तो मोक्ष पाते सभी
शिवदूती माहेश्वरी प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

सम्पूर्ण जगत को रचाने वाली
विश्व को वश में करने वाली
हे विश्वेश्वरि! प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

सकल विधाएँ तुम्हारे स्वरुप
सब स्त्रियां तुम्हारा ही रूप
सत्यानन्द स्वरूपिणी प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

तुम हो देवी जगदम्बा, जो
व्याप्त करे पूरे विश्व को
देवी अनन्ता प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

तुम हो परावाणी, परमाया
पराविद्या हो और पराकाया
अभव्या नारायणी प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

इस जगत की कारणभूता
तुम देवी! हो सर्वस्वरूपा
सबके मन में विराजमान
तुम हो देवी बुद्धिरूपा
बुद्धिदायिनी! प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

तुम हो देवी! मोक्ष प्रदानी
कल्याण कारिणी शक्तिदानी
भवमोचिनी! प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

कला काष्ठादि को रूप दात्री
विश्व उपसंहार की तुममे शक्ति
माहेश्वरी देवी प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

तुम हो देवी मंगलमयी
मंगलकारक सब प्रकार की
कल्याणदायिनी शिवा! प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

वत्सला हो शरणागत की
पुरुषार्थ सिद्ध करने वाली
तीन नेत्रों वाली गौरी
तीनो लोकों को जीतने वाली
त्रिनेत्री गौरी प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

तुम शक्तिभूता सृष्टि की
पालन और करती संहार
सनातनी! सर्वगुणमयी हो
और तुम हो गुणों का आधार
सनातनी देवी! प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

शरण में आये दीनों की
रक्षा में हो आप संलग्न
पीडितो की पीड़ा दूर कर
नारायणी हो जाती हो मग्न
देवी नारायणी प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।

तुम ब्राह्मणी का रूप धर
बैठी हंस युक्त विमान पर
तथा छिड़कती रहती देवी
हाथों से ब्रश मिश्रित जल
ब्राह्मणी देवी प्रसन्न हो
तुमको बारम्बार नमन हो।


क्रमशः …

Thursday, March 26, 2015
Topic(s) of this poem: devotion
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