Smog Poem by vijay gupta

Smog

स्मॉग

बड़ा शोर सुनते हैं
स्मोग छा गया।
बड़ा शोर सुनते हैं,
इंसान खतरे में आ गया।
ये इंसान खुद ही तो है,
खतरे को बढ़ाने वाला।
फैलाता है सबसे ज्यादा प्रदूषण,
नाक से, मुंह से,
फिर खुद ही शोर मचाता है,
स्मॉग फैल गया।
प्रकृति से छेड़छाड़
खुद ही करता है,
पेड़ों को अंधाधुंध,
खुद ही काटता है,
फिर शोर मचाता है,
स्मॉग फैल गया।
धरती का बैलेंस बिगड़ता है,
तब आता है भूकंप।
फिर खुद ही शोर मचाता है,
भूकंप आ गया।
इंसानो की सोच को सुधारो,
सब ठीक हो जाएगा।
इंसानो की आबादी कम करो,
सब ठीक हो जाएगा।
लगता है कुछ होश तो आया है उसे,
सोलर एनर्जी, व जल उर्जा का ख्याल उसको आया है।
अच्छा है वक्त रहते इंसान सुधर जाए,
बहुत बड़ी आफत से दुनिया बच जाएगी।

Monday, November 13, 2017
Topic(s) of this poem: climate
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vijay gupta

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meerut, india
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