नदी जब मचलती आगे को चलती
गीत गा के ये कहती, तुम यहीं कही हो।
सागर किनारे, हैं गरजतीं जब लहरें
समझ हम ये जाते, तुम यहीं कहीं हो।
बतियाते हैं मुझसे चहकते जब पक्षी
लगता है सच्ची, तुम यहीं कहीं हो।
कानों में आती पवन की सरसराहट
लग जाती है आहट, तुम यहीं कहीं हो।
पेड़ों पर बजाकर, हाथों से करतल
जताते हैं पत्ते, तुम यहीं कहीं हो।
सुनाती संगीत जब झरने की कलकल
कहता मन तत्पल, तुम यहीं कहीं हो।
सारंगी बजा के, रातों को जगा के
बताता है झिंगुर, तुम यहीं कहीं हो।
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