हर तरफ़ है छिड़ी समय को भुनाने की ज़िरह
कल का सौदा टके का, आज बेशकीमती है
कल था नवरात्र तो महँगी थी देवियों की शकल
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शहर में कुछ गाँव होते, गाँव में कोई शहर होता
बैठते मिल बात करते, ऐसा कोई पहर होता
दोनों ही घर से निकलते, मिलके जी भर बात करते
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जो भरा है श्रीविभूषित सौख्यप्रद भंडार से
वह ने कोई देवधन है
या न कोई मुक्ति प्रण है
यदि नहीं मनुजत्व उसमें, वह वीराना है सिफ़र है
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प्राप्त करने को जिसे दिन भर लड़े
वह आ गयी रोती हुई सी शाम, लेकर क्या करोगे
हम प्रथम किस भाँति हों, विजयी बनें
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देश नहीं बदलेगा शहरों की गलियों से
ऐश-कैश से या फिर मस्ती रंगरलियों से
रहते जहाँ रथी पौरुष के
उन सब गाँवों से बदलेगा
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हम जिए जाएँ लम्हें हर शान के मुताबिक़
हर शाम गुज़र जाये अनुमान के मुताबिक़
कुछ ऐसा करिश्मा हो मिट जाएँ भेद सारे
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ये हथकड़ियाँ और सलाखें, डर लगता है
लुटी शांति आए दिन रहता रेड-अलर्ट है शहरों में
जीवन की मधुरसता खोयी फ़न फैलाती लहरों में
बारूदी सुरंग पर बैठी इस दुनियाँ को अल्ला राखें, डर लगता है
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