संकल्प
संकल्प
एक संकल्प था
जीवन से सत्यता को निभाने का
एक संकल्प अपने पर भोगे सत्य को व्यक्त करने का
एक जीवन ज़िन्दगी जीने का
अब तक उसी आशा में हूं
कब उपयुक्त आयेगा समय
और कब होगा मेरे मन में एक सत्य का प्रकाश
जीवन कलियों फूलों की कहानी
काँटों की तरह से भी जिया
काँटों को छुआ उनसे लहू को स्पर्श कराया भी
लिखूँ कैसे प्यार से मनुहार से गुहार से
या पसीने से लहू से तलवार से
सत्य को उजागर करने के लिये इतने
घर्षण का विरोध क्यों है मन में
मैने कई बार पिया है सुलगते अंगारों को
आसमान और सुनसान रातों के टिम-टिमाते तारों को
भीगी पलकों भीगी तकियों भीगी चादर
और तौलियों से मन को कैसे खाली करूं
अवरोध है बरकरार
क्यों मेरे मन को मष्तिष्क को
सच को बाहर निकालने के लिये
करनी पड़ेगी तकरार
और मेरे जीवन के सत्य से
क्या किसी अन्य का हो सकता है उद्धार
अंतर्व्दन्द की परतों पर परतें
जमी हैं
खुलती क्यों नहीं सत्य की गांठ
मन ने क्यों इतना दृढ़ संकल्प लिया
सत्य को बीनना चुनना समेटना सहेजना
फिर मन की गांठ में बांध लेना
उजागर न होने देना
क्या सत्य बंधनों का है नाम
या कभी न खुलने वाली गांठ का
मन के भरोसे बैठे रहने का सत्य
कैसा है यह मेरा संकल्प!
मेरे जीवन का संकल्प! !
- - - - - सुरेन्द्र सिंह राजपूत
7 मई,2016