क्या तुम हो तैयार?
एक बार में,
अनेको बार में,
जीवन के आचार में
स्वयं के सोचने में व्यवहार में
तय लक्ष्यों के पार में भौतिक संसार में,
जीवन का गीत गुनगुनाता है अलबेला और अंजान
एक यात्रा का उद्धार करने को,
कुछ भले बुरे संकल्प एवं पथ अर्पण समर्पण
किसी स्वप्न को संजोने संवारने में,
खोजने में खुशियों के अपार खजाने
समय के संदर्भ को संकुचित कर
लाभ हानि की इच्छाओं के व्यापार में,
जीवन जीतने की हार में, स्वयं की पहचान में
किसी शून्य की यात्रा में निकलने को आतुर
आत्मा हृदय के द्वार खटखटाती है,
क्या तुम हो तैयार?
मेरा साथ देने के लिये
या चल पड़ूं मै अपने अगले गंतव्य में,
उद्धार की तलाश में
आत्म चिंतन आत्म चेतन
आत्मा के चक्रव्यूह संसार में ।।
- - - - - - - सुरेन्द्र सिंह राजपूत
25 अगस्त 2016, मणवालकुरिच्चि,
कन्याकुमारी तमिल नाडु
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem