गुरु से बढ़कर इस दुनिया में, न कोई दूजा होवे रे
जो गुरु को कुछ भी न समझे, वो रावण बन रोवे रे
प्रेम-क्रोध तो दो ही रूप है, दया-दृष्टि की महिमा अनूप है
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वो खुशबू न जाने कहा खो गयी
जो तेरे होने से महसूस हुआ करती थी...
जहाँ शामें लिया करवटे..
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अरे मैं तो था उन कश्तीयों में, झूठ से भरी बस्तियों में
साथ मेरे क्या धरा था, मैं तो पूरा सच खड़ा था ॥(2) ॥
दुनिया साँची मैं ही झूठा, मुझसे ही मेरा मन था रूठा
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अरे मैं तो था उन कश्तीयों में, झूठ से भरी बस्तियों में
साथ मेरे क्या धरा था, मैं तो पूरा सच खड़ा था ॥(2) ॥
दुनिया साँची मैं ही झूठा, मुझसे ही मेरा मन था रूठा
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