तुम्हारे बिन मुझे ओ माँ ये घर अच्छा नहीं लगता Poem by Abhishek Omprakash Mishra

तुम्हारे बिन मुझे ओ माँ ये घर अच्छा नहीं लगता

Rating: 5.0

ज़माने भर की रौनक है, मगर अच्छा नहीं लगता
कोई दरगाह या कोई दर, मुझे अच्छा नहीं लगता
न भाता अब ये आँगन ही, न भातीं अब ये दीवारें
तुम्हारे बिन मुझे ओ माँ ये घर अच्छा नहीं लगता

कवि अभिषेक मिश्रा 'अपर्णेय'

Saturday, October 24, 2015
Topic(s) of this poem: love and art
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 24 October 2015

बहुत सुंदर, बहुत मधुर. माँ की ममता अतुलनीय है. इसी ममता को समर्पित आपकी कविता कथ्य तथा अभिव्यक्ति में बहुत ऊँची है. धन्यवाद, मित्र.

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