बेचैन वो रहता है मेरे पास से जाके Poem by Suhail Kakorvi

बेचैन वो रहता है मेरे पास से जाके

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बेचैन वो रहता है मेरे पास से जाके
देखा है कई बार मुझे उसने भुला के
आने से तेरे रंग बदल देगी तमन्ना
अल्फ़ाज़ बदल जायेंगे अये दोस्त दुआ के
ये बर्क़ ये गुल और चमकते हुए तारे
सब जलवे हैं ये आपके हंसने की अदा के
मैंने भी बताया कि मेरा हौसला क्या है
तेवर तो बहोत तेज़ थे तूफाने बला के
ज़ाहिर हुए जब राजे मोहब्बत तो खलिश क्या
जाता है तो जाये कोई दामन को छुड़ा के
हम क़ूवते परवाज़ में सानी नहीं रखते
तोड़े हैं जो दर बंद थे हमने ही खला के
ये मान लिया हम तो हैं नाकामे मोहब्बत
तुम और किसी से भी दिखाओ तो निभा के
बेबाक निगाहों में मेरी ऐसी कशिश थी
वो भूल गए आज तो अंदाज़ हया के
उन आँखों में आंसू थे मेरा हाल जो देखा
मंज़िल ने क़दम चूम लिए अबलपा के
वो रोज़ सुहैल एक नई छेड़ करे है

बेचैन वो रहता है मेरे पास से जाके
Tuesday, October 27, 2015
Topic(s) of this poem: love
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Suhail Kakorvi

Suhail Kakorvi

Lucknow
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