क्या है हानि? Poem by Anjali Chand

क्या है हानि?

इतना ना समझ पाया,
नादान है ये इंसान ।

लड़ रहे दो मज़हब के लिये,
जब एक ही है भगवान॥

अभी कल ही तो जले थे,
उस घृणा की आग में।

मार दिये जहा हजारो,
बस मज़हब के नाम पे॥

अगर पढ़ी होती इसने,
गीता और कुरान ।

धर्म के नाम पर यूँ,
नहीं मचाता यह कोहराम ॥

अब पूछों उस माँ से,
क्या है हानि?
अब पूछों उस माँ से,
क्या है हानि?

हिन्दू मुस्लिम दंगो मे,
जिसने एकलौता लाल है खोया।

कर चुकाना इन्सानियत का,
भूले मौत के व्यापार में  ।

भविष्य का जो कल थे,
भूत हो गये आज में ॥

स्कूल की जिस कमीज पर,
स्याही के छीटों का था खौफ।

खून से लथपथ फर्श पर ,
पड़ी थी नन्ही लाशें बेखौफ ॥

अब पूछों उस पिता से,
क्या है हानि?
अब पूछों उस पिता से,
क्या है हानि?

अभी अभी जो कर्बिस्तान में,
अपना लाल दफना आया ।

देख उस किसान का हाल,
कलेजा और भी रोया ।

खरीफ फसल में पानी को,
जो सारी गर्मी रोया ॥

बेमौसम बरसात ने जब,
राबी फसल को धोया ।

छिडक तेल बदन पे तब,
उसने अपना जीवन खोया ॥

अब पूछों उस विधवा से,
क्या है हानि?
अब पूछों उस विधवा से,
क्या है हानि?

दो टुकड़े रोटी को जिसने,
घर घर जाकर भीख है माँगी ।

Tuesday, November 24, 2015
Topic(s) of this poem: loss
COMMENTS OF THE POEM
No name 15 May 2019

Hindi mai likh jada

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