दारू Poem by Ajay Srivastava

दारू

थोड़ी सी देशी दारू हमने पी ली।
लोगो की कड़वाहट सामने आ गयी।
कदम हमारे लडख़ड़ाए गिर गए वो।
नशा हमें चढ़ा तकलीफ उनको हुई।

नशा उतारने के लिए उन्होंने पुलिस से डंडे पड़वाए।
हमारी हालत ख़राब देख प्रशासन को तरस आया।
प्रशासन ने हमें ईमानदारी मुक्ति केंद्र भेज दिया।
पर यह क्या हमारा नशा यहाँ भी नहीं उतरा।

दवाइयों को प्रभावहीन देख
चिकित्सको ने अपना पसीना पोछ कर पूछा
कौन सी दारू चढ़ा ली
हमने कहा यह देश भक्ति की दारू है।

भ्रटाचार की दवाओं से नहीं उतरती यह दारू।
उसूलो की भट्टी में तप कर बनी है यह दारू।
इस दारू का नशा हर किसी को चढ़ता नहीं।
जिसको इस दारू का नशा चढ़ जाता फिर।
यह दारू दुसरो का नशा उतारती है।
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दारू
Monday, November 30, 2015
Topic(s) of this poem: drink
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