खुशिओं के रंग Poem by Upendra Singh 'suman'

खुशिओं के रंग

खुशिओं के हजारों रंग छिपे, जीवन के तुम्हारे मधुबन में.

मेरी मंजिल तुम ही तो थी, तुम तो थी नील गगन में.
मैं तुमको खोजा करता था, अपने मन के वृन्दावन में.
खुशिओं के हजारों रंग छिपे, जीवन के तुम्हारे मधुबन में.

बल खाते यौवन की मदिरा, मद भरती मेरे तन-मन में.
मैं छवि तेरी देखा करता, अपने मन-मानस दर्पण में.
खुशिओं के हजारों रंग छिपे, जीवन के तुम्हारे मधुबन में.

चन्द्रिका निखार अब आयी है, मन उपवन में घर आँगन में.
मंजुल मनभावन दामिनी सी, तूं दमक रही जीवन घन में.
खुशिओं के हजारों रंग छिपे, जीवन के तुम्हारे मधुबन में.

सदियों की अधूरी अभिलाषा, जो इन्द्रधनुष सी थी मन में.
सपनों को ऐसे पंख लगे, साकार हुआ विधु जीवन में.
खुशिओं के हजारों रंग छिपे, जीवन के तुम्हारे मधुबन में.
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Friday, December 4, 2015
Topic(s) of this poem: love
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