तेरी गलियों में Poem by Upendra Singh 'suman'

तेरी गलियों में

Rating: 5.0

तेरी गलियों में क्या आना-जाना हुआ.
मुझसे नाराज सारा ज़माना हुआ.


जिसने पाके मुहब्बत को समझा नहीं.
प्यार उन जाहिलों का निशाना हुआ.


है निगाहों पे पहरा कि अब क्या कहूँ.
घर मेरा ही मेरा कैदखाना हुआ.


ये है पाके महुब्बत पे कैसा सितम.
दूर मुझसे मेरा सनमखाना हुआ.


काफ़िरों को बता दे ये जाहिद मेरे.
प्यार बचपन का अब तो सयाना हुआ.

इश्क उनके करम का न मोहताज़ है.
दिल मेरा अब तो उनका ठिकाना हुआ.


वहशतें प्यार को अब न छू पायेंगी.
प्यार मीरा हुआ प्यार कान्हा हुआ.

उपेन्द्र सिंह ‘सुमन’

Friday, December 4, 2015
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Deepak Kaushik 18 December 2015

dear sir if i m a singer..i will sing this poem...heart touching poem....

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Mantu Mahakul 04 December 2015

Love is explained well here with amazing theme. Definitely interesting sharing done.

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