वो कहते है पराए हो गए|
हम कहते है पराए अपने हो गए|
वो कहते धर को छोड चले|
हम कहते धर को जोडने चले|
वो कहते है मर्यादा मे बधने चले|
हम कहते मर्यादा सीखाने चले|
वो कहते है प्यार देने चले|
हम कहते है प्यार को जोडने और बडाने चले|
वो कहते है निभाना होगा व मान सम्मान करना होगा|
हम कहते है कैसे निभाया जाता है सिखाने चले|
वो कहते है राह कठिन है|
हम कहते है शक्तिशाली ही कठिन राह पर चलते है |
और सफलता को पा लेते है|
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I would like to translate this poem
do pakshon ke vichar me ekroopta na ho to samajhdari se samayojan ki koshish jaruri hai. dhanywad, mitr.
Thank you