मेरे द्वारा किये गये एक शोध से
ताल ठोंकते हुए यह धमाकेदार सत्य सामने आया है
और अनुभववादियों ने भी डंके की चोट पर बताया है
कि -
तमाम देशों के आर्थिक विकास का ताना-बाना
आयात-निर्यात से बना है
और हमारे देश में अपराधियों के निर्यात की
भारी संभावना है.
दरअसल,
अपराधियों के उत्पादन की हमारी तकनीक
बेजोड़ व बेमिशाल है.
इतना ही नहीं,
हमारे यहाँ अपराधी तैयार करनेवाले
कारखानों का भी जाल है.
ये कारखाने स्वयं सरकार द्वारा संचालित हैं
और क़ानून-व्यवस्था के प्रकाश में परिचालित हैं.
इन कारखानों को हम दूसरे शब्दों में जेल कहते हैं
जहां शातिर व खूंखार अपराधियों के सानिध्य में
अज्ञानी, अबोध व छुटभैये अपराधी रहते हैं.
बड़े अपराधी अनुभवहीन व नासमझ अपराधियों को
निःशुल्क प्रशिक्षण देते है
और बदले में कानी कौड़ी भी नहीं लेते हैं.
स्वर्णिम अतीत के गुरूकुलों के ढर्रे पर
जेलों में यह व्यवस्था पूरी ईमानदारी से चल रही है
और हमारी युवा पीढ़ी अपराध की भट्ठी से तपकर निकल रही है.
दो टूक शब्दों में कहें तो
अपराधियों के उत्पादन में हमारी जेलों का
अभूतपूर्व योगदान है.
अंग्रेजों से ली गयी हमारी जेल व्यवस्था
सचमुच महान है.
इन जेलों को उच्च स्तर की अत्याधुनिक फैक्ट्री में
तब्दील करने में अंग्रेज़ी मानसिकता से सजी-संवरी
हमारी पुलिस का प्रशंसनीय सहयोग है.
हमारी पुलिस प्रणम्य है, धन्य है
और दण्डवत करने योग्य है.
प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर
राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक
इस व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.
हम उनके अपादमस्तक ऋणी हैं,
और उन तक साधुवाद पहुँचा रहे हैं.
खैर,
अब मैं मूल बात पर आ रहा हूँ.
आपको अपराधियों के निर्यात की अकूत संभावना
के बारे में बता रहा हूँ.
इन दिनों विदेशों में अपराधियों की माँग जोरदार है
और हमारी जेलों में तो इनके निर्माण का ही कारोबार है.
गौरतलब है कि -
हमारे देश के तमाम अपराधी तत्व
आतंकी संगठनों में भरती होने के लिए
हाथ पैर मार रहे हैं
परन्तु सरकारी स्तर पर सहयोग नहीं मिलने से
बेचारे मुँह की खा रहे हैं.
पते की बात कहूँ तो -
क्या खूब नदी नाव संयोग है.
नक्षत्रों का सही तालमेल है,
बड़ा ही शुभ व सुंदर योग है.
सोने में सुहागा है
परन्तु हम आयात-निर्यात के मामले में
बहुत नादान हैं,
अतः हमारा देश अभागा है.
और ऐसी अनुकूल स्थितियों में
जब कि -
वर्तमान दौर में विदेशों में तमाम आतंकी संगठन हैं,
जिन्हें खतरनाक अपराधियों की जरूरत है,
भयंकर दरकार है.
हमारे पड़ोसी मुल्क में तो इसी का कारबार है.
आज़ वह दुनिया के जाने-माने देशों में शुमार है.
इसी कारबार के बल पर
उसने हमारी नाक में दम कर रखा है
और हम नासमझ यह समझते हैं कि -
इसमें क्या रखा है.
अब हाथ कंगन को आरसी क्या
उसके सिर पर तो ‘अंकल सैम' का हाथ है,
और वह दुनिया के आतंकियों का बाप है
फिर भी महाशक्तियों की निगाहों में पाक-साफ़
यानी साफ़ पाक है.
आज़ एक जानी-मानी महाशक्ति
ख़ुद उसकी दाल गला रही है
और उसकी रोटी-दाल भी चला रही है.
वैसे तो यह एक दृष्टांत है
लेकिन अपने देश में सब कुछ होते हुए भी
कुछ नहीं हो पा रहा है
इसलिए मन बहुत अशांत है.
मैं तो तथ्यों के प्रकाश में कहता हूँ
कि -
विकसित देशों के आर्थिक साम्राज्य का तंबू
आयात-निर्यात के बंबू पर तना है
और फिर अंतरर्राष्ट्रीय व्यापार में अपराधियों का
निर्यात करना कहाँ मना है?
मेरा तो निवेदन कर रहा हूँ कि -
हमारी सरकार अब भी जग जाए
जल्दी आँखे खोले
और अपराधी निर्यात जिंदाबाद बोले.
इस कारबार में चोखी कमाई है,
सिम-सिम दरवाजा हमारी बाट जोह रहा है.
किस्मत ख़ुद चलकर हमारे घर आई है.
कोई आँखे खोलकर तो देखे सचमुच बहार आई है.
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'
विकसित देशों के आर्थिक साम्राज्य का तंबू आयात-निर्यात के बंबू पर तना है और फिर अंतरर्राष्ट्रीय व्यापार में अपराधियों का.... Really a tremendous poem.....loved it......Jo apne likha h shatpratishat katu satya hai.....thank you for sharing :)
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वैसे तो यह एक दृष्टांत है लेकिन अपने देश में सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं हो पा रहा है इसलिए मन बहुत अशांत है. Bhaut hi badhiyan............... Talwar chala di mene..... Kalam samjhey ho to tum mujhey smjh nhi paye.... Hanstey hanstey hi bhul Jana meri Batton ko..... Kahin aisa na ho ki ansu thamna muskil ho jaye........