गज़ल Poem by DineshK Pandey

गज़ल

इष्क़ का अदना सा मन्ज़र देखिये।
एक क़तरे में समंदर देखिये॥

मुझ पे हंसता है ज़माना आजकल,
आप भी तो मुस्कुरा कर देखिये॥

हाल मेरा खुद संवरता जायेगा,
आप यह करिये, बराबर देखिए॥
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गज़ल
Tuesday, May 10, 2016
Topic(s) of this poem: my country
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