************* कोशिश ************* Poem by Raj Bhandari

************* कोशिश *************

Rating: 5.0

ज़िंदगी के मायने अभी जानने की कोशिश में हूँ,
अभी तो बस तुझे ख़ुदा, मानने की कोशिश में हूँ,
मेरा दावा नहीं, सब कुछ मालूम है सुन अये जहां,
अभी तो, फक्त, तुझे ही जानने की कोशिश में हूँ,
रफ्ता रफ्ता किसी तरह कट जाए इसी रफ़्तार से,
इस सर झुका के ना निकलूं, निकलूं जब बाजार से,
शग़ल, वोही, चलते रहेँ दोस्तों से, गाली गुफ्तार के,
अभी तो यही पुख्ता इरादे ठानने की कोशिश में हूँ,
दूर ही निकल गया है, हाथ हिला के कोई इक शख्स,
किसी, मेरे अपने की, याद दिला के, कोई इक शख्स,
वक़्त कम अब ये अहसास करा के, कोई इक शख्स,
क्या बतायुं कौन, अभी मैं पहचानने की कोशिश में हूँ,
ज़िंदगी के मायने, अभी, जानने की, कोशिश में हूँ,
अभी तो, बस, तुझे, ख़ुदा, मानने की कोशिश में हूँ! !

Thursday, June 23, 2016
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success