अगर तुमने भी मोहब्बत की होती Poem by Ahatisham Alam

अगर तुमने भी मोहब्बत की होती

अगर तुमने भी मोहब्बत की होती
एक हक़ तुमपे भी रहा होता
इकतरफ़ा न ये चाहत होती
जो इज़हार तुमने भी किया होता
सीने में ऐसी न चुभन होती
दर्द लफ़्ज़ों में बयाँ होता
कुछ हमसे भी सुना होता
कुछ तुमने भी कहा होता
रह रह के ना रोते हम
घुट घुट के सहते ग़म
मिट जाता ना ये आलम
तुमसे भी जो हाँ होता

Sunday, July 24, 2016
Topic(s) of this poem: love
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