मेरी आदत ख़राब है Poem by Ahatisham Alam

मेरी आदत ख़राब है

मैं अब सम्भल सकूँ
कहाँ मुझमे इतनी ताब है
जिसे तू न पढ़ सका
वो मेरी ज़िन्दगी की किताब है

मेरे अश्क बेवजह सही
मेरा दर्द बेहिसाब है
तू किसी और का नसीब है
तू किसी और का ख़्वाब है

तेरे अनकहे सवाल का
बस यही जवाब है
हाँ मैं बहुत बुरा हूँ
मेरी आदत खराब है।

Sunday, July 24, 2016
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success